वो जो कभी कह ना सका



कुछ वो बातें जो शायद मैंने तुमसे कभी कही होगी 
वो जो रातों के अँधेरे में तो कभी
उस नीली सी चादर वाले आसमान के नीचे  
मैंने चुपके से आ कर तुमसे कही होगी

जो ना भी कहीं हो तो 

आज कुछ बात कर ही लेते है 
जो कहानी कभी तुमने सुनी नहीं 
वही  तुमसे साझा कर ले 

अब जो तुम्हारा ये खत मिला है इस खाली से लगभग खंडहर हो चुके इस मकां में, तो मैं भी कुछ कह ही देता हूँ। 
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खत 
 
   उन दिनों मैं घर से काफी दूर एक अजनबी से शहर की ओर निकल पड़ा।  ऐसा भी नहीं की ये शहर मेरे लिया उतना भी नया हो, बचपन से इसी के ख्वाबों ने तो मुझे रोमांचित किया था।  फिर आज सफर में पीछे मुड़कर भी क्यों देखना क्या है वहा? एक घर ही तो है, और कुछ अपने?  हां शायद। उनके लिए फिर से मैं रास्ते से पीछे नहीं हट सकता, अब जो सफर शुरू हुआ है तो इसे मजिल तक पहुंच ही जाने देते। 
  वक़्त बितते देर कहा लगती और कैलेंडर पर बदलती तारीखों महीनो और सालों में मुझे ये अनजबी सा शहर जाने क्या बना गया। अब  जो एक अरसा भर बीता चुका हूँ यहाँ तो, फिर पीछे मुड़कर देखता भी कैसे। वक़्त के जाल में इस क़दर उलझा दिया था इसने मुझे। हां लेकिन तुम तो बड़ी शान से आज भी वही हो उन्ही कुछ लोगों को अपना बना कर।  तुम क्या जानो की बड़े शहर ये इमारतें वो कच्चे सी सड़को वाली गलियों के मकानों से कितने अकेले से  है। मैं कहता नहीं तुमसे पर तुम क्या जानों की तुम्हारी हर बात याद है मुझे, खैर जाने दो गर लौट आया वहां तो ये ज़माना क्या कहेगा??

तुम्हारा-
अथर्व 

}

   मेरी बातें तुम तक पहुंच जाए ऐसा कोई जरिया भी कहा बना है।  ये चमत्कार  गर हो भी जाये तो कौनसा तुम लौट कर आने वाले हो।  तुम्हे याद हो या हो वो मेरे निचले हिस्से को जो ३ लाइन खिंच कर तुम जब सचिन वाला शॉट खेलते थे न बड़ा मजा आता था।  वो मेरे दरवाजे से उस पर तुम्हें मैदानों में दौड़ लगाती तुम्हारी यादें मुझे बहुत कचौटतीं है।  अब न उन कच्ची सी सड़को पर खेलता कोई आकर मेरी किसी दिवार की ओट में छिपकर गायब होता ना मेरी मरम्मत की बरसात में कोई फ़िक्र लेता है।  जिन अपनों ने मुझे बनाया  वो भीं मुझे छोटा कहकर मे साथ छोड़ गए , मुझसे तो वो तुम्हारी कागज वाली नाव का सौदा ना होता जाने कैसे इन्होने मुझे ही नीलाम कर दिया।  मैं नहीं कहता की मुझे अपना लो तुम फिर से, मैं तो बस चाहता हूँ की तुम आओ कुछ देर ठहरों मेरे साथ वक़्त बिताओ। हम मिल कर कुछ बातें करेंगे कुछ तुम अपनी सुनाना मैं भी अपनी कह लूंगा। 

जाने कैसे दौर से गुज़र रहा है तेरा कारवां वेद ,
ठहर कर उस ओर आज देख भी ले ,
वो तेरा बचपन, वो तेरा कल ,
तेरे आज को देखने को बेताब है। 

--वेद 

उम्मीद है आपको ये संवाद पसंद आया होगा।  कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये, शेयर करे और अपने घर से जुडी यादों को मेरे साथ साझा भी कर सकते है।  

Email ID- v.patil1998@gmail,com

Comments

  1. जिस दिन मैने अपना घर छोड़ा था, मुझे याद है मे उस दिन कई घण्टो तक रोया था मेरी सारा बचपन उस घर मे बसा था और आज तुमने वापस वो सारी यादे ताज़ा कर दि

    Thanos ved

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