वक्त लगता है
घाव कैसा भी हो
मरहम मिल भी जाये
फ़िर भी उससे उभरने में
वक्त तो लगता है
अब जो घर से दूर है
तो वो आंगन वो गलियां भुलाने में
वक्त तो लगता है
देखो ना कल ही कि तो बात है
बड़े खुश तो साथ थे
अब जो दूर हो गए हो
तो दूरियां बढ़ाने में
वक्त तो लगता है
जो एक आदत सी
हो गई थी तुम्हारी
जो कहानी और कविता
हो चली थी तुम हमारी
अब नए किरदार बुनने में
वक्त तो लगता है
जिंदगी के कैनवास पर वेद
अधूरी ही सही पर
तस्वीरें उकेरने में
वक्त तो लगता है
-वेद
Sahi jaa raha h....keep writing
ReplyDeleteShaandar bhai
ReplyDeleteBeautiful poem👌👌
ReplyDeleteTo write such a beautiful piece, waqt to lgta h😅
ReplyDeleteShuru k para me ghar yaad aa gaya... beautiful piece.
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