कुछ बातें मेरे बढ़ते कर्ज़ की

जो बिन सोये गुज़ारी है 
वो रातें तुम पर कर्ज़ है 

       वैसे मुझे रातों की नींद बड़ी पसंद है लेकिन आजकल खुद में कुछ इस क़दर उलझ जाता हूँ जैदी किसी ने मुझे अपने ही घर में बेघर कर दिया हो। वो कुछ अजनबी से ख़यालों में अजनबी से चेहरे देखना हो या बे-ख़याली में ख़ुद से गुफ़्तगू करना।ऐसा नहीं है कि में अकेला हैं काफ़ी, कई सारे लोग रोज़ मेरी तरह अँधेरे से जंग लड़ते है।
वैसे में जानता नहीं हूं कि ये कर्ज़ कैसे उतार पाऊंगा क्योंकि मैं कई राते तो तारों सितारों को बिना देखे उनमें खोते हुए गुज़ारी है। चाँद को देखे तो पता नहीं शायद एक अरसा बीत गया होगा, लेकिन बिना उसके मेरी नज़्म पूरी ही नहीं होती है। मुझे इस कर्ज़ की आदत सी हो गई है, बात दरअसल ये है कि अब मैं कर्ज़दार ही रहना चाहता हूं, क्योंकि क्या है ना जो सुकून रात की खामोशी में है वो शायद दिन के शोर में नहीं।

     मुझे पता है औरों की तरह तुम भी यही सोच लेती होगी कि कोई तो है जिसने नींद छीन रखी होगी मेरी। तुम गलफ़हमी मैं ही रहना, वो क्या है ना अब खुद ही के आघोश में खो गया हूँ, खुद ही कि तलाश में। हर रात के रंगमंच पर अब अजब सा मंजर रहता है कभी मैं अपने कुछ करीब होता हैं या कभी होता ही नहीं हूं।

वैसे तो लाज़मी हर पल का इंतज़ार होता वेद
जो गर मुक़म्मल ख्वाहिशों का हिसाब लगा लेतेे।

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Comments

  1. Deep!! Loved this part ever more than the 1 part.😍😍

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