एक ख़त मेरे पहले प्यार को - २

पहला ख़त
https://vedpatil.blogspot.com/2018/12/1.html


पिछली बार तुमसे बात की तो बड़ा अच्छा लगा, तो सोचा चलो इस बातों के सिलसिले को आगे बढ़ा लिया जाए। मैं आस में था कि तुम मुझे जवाब में कुछ लिख कर भेजोगी लेकिन तुम फ़िर एक अधूरी मोहब्बत का पूरा किस्सा बन कर आ गयी। कुछ कहानियां, कुछ रिश्ते जिस्मानी नहीं होते, वो बस एहसास के होते है। कुछ इसी तरह के एहसास से बंधी है हमारे रिश्ते की दौर, मेरी कविताएं, कहानियों और उनकी बातों में तुम। मैं अब अपने अकेलेपन से गुफ्तगू करना सीख गया हूँ, कई बार जब तुम नहीं होती हो तो मैं खुद ही तुम्हें लिख कर पढ़ लेता हूँ, वो भी अपनी मर्ज़ी से। मैंने अपने शेल्फ में तुम्हारे हर रूप को सजा रखा है, जैसे फ़ोटो की कोई गैलरी हो यादों के गलियारों से आती तुम्हारी हो खूशबू। वो सूखे हुए गुलाबों और तोहफ़े में मिली सौगात, कितना कुछ मैंने तुम्हें दे दिया। तुम जो भी हो जैसी हो पंसद हो, बस आजकल हम मिलते कम है और बातों के लिए वक़्त थोड़ा कम रहता है।

तुम्हारा-
वेद

मैंने अक़्सर खामोशी को परेशान करते देखा है वेद
बेवजह ही सही पर बातें होते रहे तो ही बेहतर है

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