एक ख़त मेरे पहले प्यार को-1


  तुम्हें किस हद तक चाहता हूं तुम जानती भी हो ?? नहीं शायद, अरे तुम्हें तो याद भी नहीं होगा कि कैसे तुम्हारे हर रूप को संवारा था मैंने। अपना वक़्त तुम्हारे साथ कुछ यूं गुज़ार दिया कि लोग अब मुझे जानते भी मुझे तेरे ही नाम से है। कभी शाम की वो कॉफी और सुबह चाय तक तुम्हरा साथ रहना और मैं कैसे भूल सकता हूं कि सफ़र में जब भी अकेला होता था, तो तुम ही तो हमसफर बन जाती थी मेरी। कभी रोमांच से भर देती हो तो कभी जज्बातों में कुछ यूं उलझा दिया कि कब आँखों से आँसू आ गए पता ही नहीं चला। फ़िर भी मैं तुमसे कभी नाराज़ हुआ ?? नहीं ना, तुम्हारा साथ वही तक था ये सोच कर तुमसे फ़िर मुलाक़ात का ख़्वाब बुन लेता हूँ। वैसे तुम अगले ख़त का इतंज़ार करती रहना।

तुम जानती हो हर क़िरदार बहुत ख़ास है तुम्हारा ,
पन्ने दर पन्ने तुम्हारी गिरफ्त में चला जाता हूँ,
वो क्या है ना कि इनकी दुनिया ही कुछ ऐसी है वेद,
यहाँ आना शायद बहुत आसान है लेकिन इस क़ैद से आज़ादी नामुमकिन है....

तुम्हारा-
वेद 

Comments

  1. Bhai bhot mast hai letter but 5th line me "meri" do baar likh diya hai 🙏🙏

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  2. Kahaniyon se ishq to koi bahut bada kahanikar hi samjh sakta h

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  3. Sir❤️
    Ye Ik panne ki dastaan Hai Granthon me Bas Jayegi
    Gar Wo Ishq Mukammal hoga kaaynaat dohrayegi

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  4. What a letter!😍 Inspiration kon h?😁

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  5. Wow such a nice letter 👌👌

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