कुछ पन्नें डायरी के - पापा का बैग

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About Diary

वैसे तो बचपन से अच्छा कुछ नहीं है, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा अच्छा लगता है उन यादों को संजो कर फिर से दोहरा लेना।
आज एक दोस्त से बात हुयी वो  परेशान थी की  छोटे भाई के लिए कोई  गिफ्ट लेकर नहीं गई तो भाई नाराज़ है।  ये सुन कर वो मोड़ा हुआ डायरी का पन्ना मैंने पढ़ना शुरू किया, तो सोचा की ये पन्ना फिर से लिखा दिया जाये।

पापा का बैग

बात तब की है जब मैं करीब 8 साल का था

    आज ३ दिन के ऑफिस टूर के बाद पापा घर आने वाले थे, वैसे मैं  ऐसे तो कभी ७ बजे  से पहले उठता नहीं था।  लेकिन सुबह ५ बजे उठाने का फरमान मम्मी के पास पहुंच चूका था कि हमारे पिताजी का वेलकम हम खुद करना चाहते है।  इतना कह कर मैं सो गया, फिर जब सुबह ६ बजे उठा तो पापा मेरे पास वाले पलंग पर सो रहे थे।  मैंने मां को चिल्लाया और सीधे हाल में रखे पापा के बैग की तलाशी ली और  मायूस सी शक्ल बनाकर ब्रश करने चला गया।  मेरा उस पुरे दिन किसी काम में मन नहीं लगा मैंने दिन के खाने पर किसी से बात नहीं की फिर शाम को जब क्रिकेट खेलने नहीं गया तो  माँ ने चिल्ला कर कहा, बेटा क्या हो गया ??

मैंने रोते हुए कहाँ पापा मेरे लिए इस बार कुछ नहीं लाये

माँ इतना सुनते ही बोली सुन फ्रिज के ऊपर से दवाई का पैकेट उठा कर दादी को दे आ, मैं गुस्से में  उठा और बोला कि इस घर में किसी को मेरी परवाह नहीं है।   फिर फ्रिज के ऊपर रखी वो मेरी पसंदीदा गाड़ी देखी तो में रो पडा  लेकिन अब की बार ये आंसूं अच्छे थे।

--वेद 

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