रेखाओं के पार

ज्योतिष की भविष्यवाणी थी
मेरी हाथ की रेखाएं उसने पढ़ी थी 
वो कहते थे की उम्र के साथ
मैं सुलझता चला जाऊंगा
पर देखो एक अरसा हुआ है
मैं उलझ सा गया खुद ही में

वो क्या है न कि कुछ बैचेनी सी थी
मन काफ़ी दिनों से अशांत सा था
दोस्तों से मिला तो कहा की
किस्मत में कुछ  खराबी है


सुन सबकी उलझन भरा मेरा मन
ज्योतिष के पास हो लिया
मेरे हाथों में उसने कुछ देखा
और फिर रेखाओं के गणित से समीकरण बने
फिर मेरे जीवन का गुणा भाग किया
और मुझे एक सुलझी हुयी
ज़िन्दगी मिल जाएगी ऐसा कह दिया 
वो जो एक किस्मत वाली रेखा है
वो थोड़ी सी रूठी हुयी है
कुछ वक़्त दो सब ठीक हो जायेगा

अब उस बात को एक अरसा बीत चूका है
मैं अब भी बैचैन हूँ
क्योंकि मैं रेखाओं के गणित में
अपने जीवन के समीकरण का
हल ढूंढ रहा हूँ
दरअसल जीवन वही तो है
जहाँ ये मन रेखाओं के पार
एक नज़र दौड़ा ले
फिर जाये वापस झांक कर देखे
सुलझी हुयी ज़िन्दगी  खुद को
इनाम में दे

-वेद

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