कुछ यूँ हुआ
कहानी एक मित्र के जीवन से प्रेरित है।
आज का दिन -IIT DELHI
१४ साल पहले
आज का दिन -IIT DELHI
…….की दिल अभी भरा नहीं, अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं ,अभी
अभी तो आये हो बहार बनके छाएँ हो। दिल्ली में सोनू निगम के लाइव कॉन्सर्ट
में चित्रांश ने वो चेहरा देखा जिसकी तलाश उसे कई बरसों से थी। वो नहीं
जानता था की एक भोली भाली मासूम सी लड़की जो किसी के डांट भर देने से रोने
लगती हो, इस तरह सोनू निगम को चीयर करते हुए मिलेगी, वो भी पूरे ११ साल
बाद। मेरी नज़र उससे हट ही नहीं रही थी कुछ देर बाद गाना ख़त्म हुआ और उसका
bad luck की वो उस कॉन्सर्ट का आखिरी गाना था| हमारे बीच की दूरी इतनी थी कि
भीड़ में मेरी उसको आवाज़ देने की सारी कोशिशें नाकाम हो रही थी और वो सुन
भी लेती तो शायद ही पहचान पातीं। मैंने कोशिश कि उस जाती भीड़ में उससे मिलने
की, लेकिन जैसे ही में ऑडी से बाहर आया वो मुझे नहीं दिखी। वो शायद चली
गई उसकें बाद वो हॉस्टल लौट आया और अपनी डायरी के कुछ धुंधले पन्ने पलटने
लगा।
१४ साल पहले
मैं फर्स्ट में था जब हम पहली बार मिले थे, वो हमारे घर के सामने वाले घर
में शिफ्ट हुई थी। उसके पापा एक बीमा कंपनी के एजेंट थे , एक नॉर्मल सी
मिडिल क्लास फॅमिली थी। वो दो २ बहिनें थी, दोनों एक से बढकर एक। संयोग से
मेधा थी फर्स्ट में और नेहा दी फोर्थ में, अगली मुलाकात में ज्यादा टाइम
नहीं लगा। आज माँ ने हलवा बनाया था ,अब सबसे 9 होने के कारण के मोहल्ले के
छोटे-मोटे काम मुझे ही करना पड़ते थे। तो सामने वाले पड़ोसियों के यहाँ हलवा
देने का काम भी मुझे ही मिला। मैं गया और नेहा दी को हलवे का प्लेट दे
दिया ,मैंने देखा वो अपनी पैक की गयी नोटबुक्स में से अपने लिए ३-४
नोटबुक्स निकाल रही थी। मैंने पूछ ही लिया कि कौन से स्कूल में एडमिशन लिया
है आपने? जवाब किचन में खाना बनती हुयी आंटी ने दिया वो बोले स्टेशन के पास वाले स्कूल में। जवाब में मैंने स्वीकृति में सर हिलाया और
फिर चला आया। ये हमारे शहर का सबसे अच्छा स्कूल हुआ करता था, और संजोग से मैं
भी उसी स्कूल था। अगले दिन जल्दी से नहा धोकर मैं स्कूल के लिए तैयार हो
गया ये कैसे हुआ इसका जवाब मेरे पास नहीं था। मेरी मम्मी उसी स्कूल में एक
हिंदी टीचर थी और मैं एक नॉर्मल सा बच्चा बस में मैं , मम्मा और वो साथ ही
में जाते थे। कितना अच्छा होता है न बचपन ,सच में कोई तो लौटा दे वो दिन। पता है उन दिनों जो दोस्ती होती थी वो मतलब नहीं ढूंढती थी। शुरुआत में तो
मेधा काफी चुपचुप और अकेली रहती थी लेकिन धीरे धीरे हमारी दोस्ती टिफिन
एक्सचेंज करने से लेकर बस में सीट शेयर करने तक थीं। कुछ दिनों बाद से
हमारे होमवर्क भी साथ ही में हुआ करते थे। जैसा कि, मेरी मम्मी हिंदी टीचर
थी तो उन्होंने ही हमें हिंदी पढानें का काम किया और हमारी बड़ी बहनों का
आपस में दोस्त होना काफी हद तक दोनों परिवारों को करीब लेन के लिए काफी था।
दिन बीतते देर नहीं लगते, आज मेरा रिजल्ट था क्लास थर्ड का वैसे भी
इंग्लिश मीडियम में पढ़ाने का मेरे पापा का तुगलकी फरमान मेरे लिए सुनना
मुश्किल था। खैर बड़ो के सामने हमारी चलती कहाँ है ?मैं अपना आखिरी रिजल्ट
लेने स्कूल पहुंचा ,मेधा भी हमारे साथ ही थी। वो कुछ उदास सी नज़र आ रही थी,
शायद मेरी स्कूल का बदला जाना उसे पसंद नही आया। उसने क्लास में टॉप किया
और मैं सेकंड आया ,और हाँ सच में उसका फर्स्ट आना मुझे कभी नहीं खटका। एक
हफ्ते बाद मैं मुंबई चला गया अपने मामा के यहाँ और इधर वो दिल्ली, उसके
पापा का तबादला हो चुका था। फिर जब में लौटा तो सामने वाले घर में कुछ नए
चेहरे दिखे। मेरा स्कूल बदला और उसका शहर स्कूल के साथ साथ मैंने बदले
दोस्त और दोस्ती के मायने। जो बदला नहीं वो थी हमारी दोस्ती, उन दिनों
टेलीफोन चलन में हुआ करते थे। तो हमारी बड़ी बहनों के ज़रिये हम कभी कभी फ़ोन
पर बात कर लेते थे, कभी कभी मतलब बर्थडे डे पर। नाइन्थ में मैं इंदौर चला
गया अपनी बुआ के यहाँ। फिर न कोई विश और न कोई फ़ोन ,लेकिन तब तक मैं फेसबुक
पर अपनी एंट्री दर्ज कर चुका था। मैंने सर्च बार में टाइप किया मेधा
पाटनी ,फेसबुक ने बड़ा प्यारा सा जवाब दिया नो रिजल्ट्स फाउंड। मेरी उम्मीद
पर पानी फिर गया ,वैसे जो हमारे बीच था ,वो दोस्ती से बढ़कर ही कुछ था। कुछ
रिश्ते होते ही ऐसे है ,जो दिल से बनते है। एक दिन माँ का फ़ोन आया की वो
पाटनी जी के यहाँ गए थे दिल्ली। मैंने पुछा मेधा थी ना वहां? कैसी है वो ,
और हाँ क्या कर कर रही है आजकल ? एक साथ पूछे गए मेरे कई सारे सवालों के
जवाब में माँ ने कहाँ बेटा वो स्कूल ट्रिप पर पटियाला गई हुयी थी। मैंने
ohk fine बोल कर फोन रख दिया।
IIT
की कोचिंग और बोर्ड एग्जाम के चलते मैं कुछ ६ महीने काफी व्यस्त रहा। इन
सब के बीच में मैं लगभग फेसबुक और मोबाइल से काफी दूर हो गया था। IIT के
रिजल्ट के दिन मुझे एक ख़ुशी मिली और वो थी मेरी three-digit IIT रैंक और
फिर में पहुंचा IIT-DELHI और ये जो सोनू निगम का कॉन्सर्ट, ये हमारे कॉलेज
में ही था।
दिल्ली आज का दिन
उसके दिमाग में अचानक से क्लिक किया की इस शो के पासेस तो सिर्फ
कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए ही थे। उसने फटाफट अपना लैपटॉप ओपन किया और हर
ब्रांच की रोल लिस्ट निकाली। कुछ देर बाद उसके सामने नामों की फेहरिश्त
में एक नाम था मेधा पाटनी {ब्रांच-इलेक्ट्रॉनिक्स}..
-वेद
कहानी
आपको कैसी लगी हमें बताये कमेंट बॉक्स में
-धन्यवाद्
Tune uski yaar dila de re😍😘
ReplyDeleteUse bhej do bhai phir ..
DeleteUse teri yad aa jayeg syd
👌👌🙏 Sir...
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