वो दिन

एक ज़माना बीत गया था उस प्रेम कहानी को | लगता है आज फिर से शुरू होगी ..
ट्रेन प्लेटफार्म न.४ पर आ चुकी थी .सामने वाली सीट और वो चेहरा .....................

25 साल पहले 
  उफ़्फ़ ये लाइन कितनी लंबी है । ऊपर से ये गर्मी भरी दोपहर , ऐसे ही खड़ी रही तो पता नहीं कब आएगी बारी..। तभी उसे ऐसा लगा कि किसी ने उसे पुकारा, ये आवाज़ थी वैभव की । नीतू ने सोचा अब लाइन में बोर होने से बेहतर होगा कि इसी से कुछ बात कर ली जाये । दोनों कुछ देर तक नॉर्मल बात करते रहे ,करीब 10 मिनट की बात के बाद ये पता चला कि नीतू यहाँ MA में एडमिशन लेने आयी थी ।अपना बैचलर्स उसने english literature से कम्पलीट किया था। RK narayan और टैगोर जी के लिटरेचर में उसका interest उसे यहाँ खीच लाया था । वैभव यहाँ phd स्टूडेंट था ।लगभग शेक्सपीयर पर अपनी reserch complete करने के बाद theisis पूरी कर रहा था । वो यहाँ part time assistant professor भी था ।अब एक ही डिपार्टमेंट से होने के कारण दोनों 1-2 दिन में मिल ही जाते थे ।6महीने बाद वैभव को डॉक्टरेट की उपाधी मिल गयी और अपनी पर्मानेंट नौकरी । 71% के साथ अपनी MA डिग्री नीतू ने भी पूरी कर ली ।उसने phd के लिए अपना कॉलेज नहीं बदला ,और उसने मदद के लिए वैभव को चुना ।उसकी पीएचडी के दौरान वैभव और नीतू के बीच एक रिश्ता बनता जा रहा था, जिससे वो दोनों लगभग अंजान थे । कौन जानता था कि कॉलेज के पहले दिन मिला एक अनजान शख़्स इस कदर पास आ जाएगा। नीतू को कविताओं का काफी शौक था, वो अक्सर वैभव को टैगोर जी की कविताएं सुनाती रहती थी ।
 मैं ही मारे शर्म के कह ना सकीं ,मै हूँ मैं वहीँ हूँ ।
और ना जाने क्या क्या 
वो भी चुपचाप सुनता रहता , वो उससे अक्सर कहता मुझे तुममें एक कहानी नज़र आती है । एक लड़की जो टैगोर की कविताओं को सुर देती है ,अपनी ही बातों में उलझी रहती है । वैभव अपनी लिखी अधूरी कहानियाँ उसे सुनाता, तो वो कहती है ज़नाब कभी पूरा भी लिखा करे । 
   इधर नीतू की पीएचडी कब पूरी हो गयी पता ही नहीं चला ।
वैभव जानता था कि अब उसको रोक पाना मुश्किल है ,उन दिनों phd तक पहुँच पाना अपने आप में एक गर्व की बात थीं और नीतू तो एक लड़की थी । होना क्या था वो चली गयीं, शायद हमेशा के लिए कहानी को अधूरा छोड़ कर ।इधर वैभव ने काफी कोशिश की उससे मिलने की लेकिन जैसे उनकी कहानी का अधूरा होना ही लिखा गया हो ।करीब 3 महीने बाद एक संदेसा आया उसपे भेजने वाले का नाम था नीतू सिंह।
    सुनो ,घर वाले नहीं मानेंगे, मेरी शादी कहीं और तय हो चुकी है तुम शादी में जरूर आना और हाँ मैंने कोशिश की थी लेकिन वो नहीं माने । 2 महीने बाद मेरी शादी है । 
                               तुम्हारी -नीतू 
 उसने जवाब देना ठीक नहीं सोचा ,वो सोच रहा था कि जब हर बार हम जानते है कि नतीजा यहीं होना है तो हम इश्क़ करते ही क्यों है ? एक बार फिर वही हमारी अधूरी कहानी । उसके बाद नीतू ने अपना शादी का कार्ड भेजा था जिसे उसने बिना देखे ही अपने बक्से में रख दिया था ।
   करीब 20 साल बाद जब उसने नीतू का चेहरा देखा उसने पहचानने में कोई गलती नहीं की थी ।सामने वाली बर्थ पर बैठी टैगोर की किताब पढ़ रही थी शायद । 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि नज़रों के मिलने का वो बरसो पहले छुटा हुआ वो सिलसिला फिर शुरू हुआ ।
  फिर शुरू हुई बात जैसी अक्सर होती है ,कहाँ हो, क्या कर रहे हो, एक साथ कई सारे सवाल । कुछ देर तक सब कुछ सही था ,फिर उसने पूछा कि -तुम्हें ख़त भेजा था मैंने एक ,कम से कम जवाब तो देते ।अरे ऐसी भी क्या मज़बूरी थी ।उसने कहा- जब कहानी पूरी ही नहीं होना हो तो उसमें और रंग क्यों भरना । खैर रहने दो क्या फ़र्क पड़ता है ,और कैसे है तुम्हारे पति ।वो अब नहीं रहे उनको गुज़रे 5साल हो गये ।वैसे मैंने जो कार्ड तुमको भेजा था शादी का वो देखा था तुमने । जहाँ तक मैं तुमको जानती हूँ तुमने card अभी तक संभाले रखा होगा ।अगर ऐसा है तो एक बार उसे खोलना जरूर। उसने हां में सर हिलाया ,स्टेशन आ गया कुछ देर बाद वो अपने रास्ते और वो अपने । 2 दिन बाद जब वो घर पहुँचा तो उसने अपना बक्सा खोला जिसमें उसकी अधूरी कहानी बंद थी । उसने शादी के कार्ड का लिफ़ाफ़ा खोला ,उसमें कार्ड के साथ एक चिठ्ठी थी जिसमें लिखा था । 
   तुम कहो तो भाग चले ।कुछ दिनों बाद जब सब कुछ नॉर्मल हो जायेगा तो सभी मान लेंगे । मैं तुम्हारे बिना शायद ही खुश रह पाऊँगी।तुम्हारे जवाब का मुझे इंतज़ार रहेगा ।जवाब इसी लिफ़ाफ़े में भेज देना मेरे नाम से ।                 
                               तुम्हारी-नीतू

                                             -वेद

Comments

  1. Akhir vaibhav ke jindagi ki lahani bhi usne adhuri hi rehne di...

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  2. “Jab kahaani poori hi nahi honi hai to rang kyo bharna...” 🙌🙌

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