मैं, चिट्ठी और संवाद

  


   मैं संवाद बनाये रखना चाहता था, सो मैं लगातार प्रयास करता रहा। मैं लाख कोशिशों के बाद भी जाने देने की प्रक्रिया में थोड़ा कमतर हूँ। मैं रोक लेने में विश्वास रखता हूँ, इस आशा के साथ की जो है जैसा है कभी अपना सा हो जाएगा। मुझे लगता है की चुप्पी से ख़तरनाक कुछ नहीं है, किसी का चुप हो जाना शायद सबसे कठीन उत्तर है। फिर मैं तुम्हें इस तरह रोकता भी कब तक। एक दिन तंग होकर मैं यह कह देना चाहता था कि मैं मौन चुन रहा हूँ। तभी अचानक से किसी फ़्लैशबैक सा बहुत कुछ मेरी आँखों के सामने से गुज़र गया। मैं स्तब्ध होकर वहीं रुक गया, अब मेरे मन में वो चुप हो जाने वाला ख़याल कमजोर हो चुका था। और मैंने तुम्हें फिर लिख भेजा कुछ, तांकि हम दोनों के बीच का ये संवाद बना रहे । 

  मैं व्हाट्सअप पर एक मैसेज भेज कर भी ये कर सकता था । पर फिर सोचा की वो सब भूल जाना आसान होता होगा, कई बार हम याद रखे जाने के लिए बहुत कुछ करते है। जैसे जन्मदिन पर कोई तोहफ़ा दे देना, या फिर कुछ सरप्राइज वगैरा। अच्छे बुरे मौकों पर फोन कर देना, शायद इसमें और भी बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है। मुझे इन सब के साथ यह लगता है कि ये कुछ वैसा नहीं है, जो कि बस रह जाये। हाँ वो तोहफ़े जब तक जिंदा होता है अपनी उम्र हमारी यादों को दे देते है। फिर उनके खत्म हो जाने के बाद हमारी स्मृतियां धुँधली पड़ जाती है। ऐसा क्या है जो ख़त्म हो जाने के बाद भी किसी कोने में अपने लिए कोई जगह बनाये रखें। मैं सोचता हूँ चिट्ठी या फिर भावनाओं का लिखा हुआ रुप रह जाएगा पढ़ने वाले के साथ। शब्दसः तो नहीं, पर पलट कर देखने वाली कोई याद या फिर मेरा वहाँ होना। तो अंत मैंने ये लिखना ही ठीक समझा। 

   मैं जानता हूँ कि तुम हिंदी के साहित्य वाले हिस्से से थोड़ा दूर हो पर मेरी भी अपनी मजबूरी है। तो अगर एक बार में सब कुछ ना समझ आये तो दोबारा पढ़ लेना या कई बार। तुम देखना हर बार तुम्हें इस लिखे हुए में कुछ बहुत नया मिल सकता है। जैसा कि फ़िल्मों में होता है ना, हम पहली बार में वो खिड़की के पीछे झाँकता इंतज़ार नहीं देख पाते है। दोबारा देखने पर कहानी को समझने का बोझ कम होता है तो वो सब जो थोड़ा कम ज़रूरी था हमारे जेहन में दस्तक़ दे देता है। वैसा ही चिट्ठी, पन्नों, किताबों के साथ भी होता है। कुछ जान लेने की इच्छा कितना कुछ ऐसा छोड़ जाती है जो हम जान सकते थे। तुम कैसी हो? या मैं कैसा हूँ ये दुनियां कैसी है वो लोग जो हमें अपनी नज़रों से प्रश्न कर रहे है वे सब कैसे होंगे? यदि भविष्य में कोई ऐसी लिस्ट बने जिसमे उन सबसे ज़्यादा गलत जवाबों वाले सवाल लिखें जायेंगे तो उसमें सबसे पहले लिखा जाना चाहिए 'कैसे हो तुम' । तो आज इससे शुरुआत नहीं करते है, हाल का क्या है अभी लिख रहा हूँ तो बहुत बेहतर है। जैसे ही ये ख़त्म होगा तो पता नहीं, उतना बेहतर होगा ये ठीक से कहा नहीं जा सकता । खैर अब जो भी है यही है। 

-वेद 

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