परिभाषा
तुम एक नए किरदार में होती हो
पुत्री के रूप से लेकर
पुत्रवधू के पुत्र प्राप्ति की कामना तक
अब भी बाँधी रखती है
तुम्हें तुम्हारी ही उलझने
मैं चाहता हूँ
तुम अब वो किस्सा बन जाओ
जो विरोध का नहीं
नवीन सृजन का आह्वान करें
औरत का होना औरत को ही न चुभें
बस इतना खूबसूरत ही जहां मिल जाए
जब भी
मैं किसी स्वरूप से मिल जाऊ कहीं
तो देख पाऊँ वो किरदार भी
जिसमें पुरुष से पहले
स्त्री करे स्त्री का सम्मान
जिसमें सहनशक्ति की परिभाषा देती कोई माँ तो हो
पर चुप न रहने को कहती भी कुछ बातें हो
अपेक्षा और सहानुभूति से लंबे परिवर्तन नहीं आया करते
विधवा, वैश्या, माँ, बेटी, चाहे जो रूप हो
उसका कोई द्वंद्व अपने ही अस्तित्व से ना हो
मैं चाहता हूँ तुम्हारा कोई क़िरदार
अपने किसी क़िरदार की कहानी का खलनायक न हो
देखना शायद इसी बदलाव तक
तुम्हें किसी दिन में कैद कर सम्मान दिया जाएगा
वेद
सटीक रचना
ReplyDeleteGreat sir
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