अनकहीं

चलो मान लिया कि दर्द अपना हमसे साझा करो इस काबिल अब हम नहीं
लेकिन उस बड़ी सी कहानी का एक छोटा सा हिस्सा हमें बताओगे क्या
तुमसे मिले तो वैसे एक अरसा बीत गया था
अब जब मिलने की वजह नहीं होती थी तो बेवक़्त घर आना अच्छा नहीं लगता था

हम अक़्सर सोचते है ना
कि कैसे फासलों का फ़लसफ़ा बढ़ता चला जाता है
कल जो हम कितने पास थे यूँ ही गली मोहल्लों में टकरा जाया करते थे
मुस्करा कर फ़िर आगे बढ़ जाते थे
अब देखो वक़्त है मेरे पास तो तुम खामोश हो गए हो

सुनो तुम शोर करते हुए ही अच्छे लगते हो
तुम्हारी चुप्पी देखी नहीं जाती हमसे
अब जो चार मिस्ड कॉल्स के बाद जब तुम्हारा फ़ोन नहीं आते है
तो सोचता हूं घंटो इन्हीं नंबरों पर ज़िन्दगी की फिलोसोफी डिसकस हुई है
वो डबल टिक वाला आखिरी मैसेज भी अब बहुत पुराना हो गया है

वैसे देखा जाए तो गलती हमारी है
जब तुमनें बताना चाहा होगा हमें
जब जानना था हमें सब तब तो मशरूफ़ हम रहे अपने कामों में
वैसे रहना भी चाहिए क्योंकि तुम तो वही थे ना
बातों के लिए वक़्त तो फिर भी मिल जाएगा
अब जब सब ख़त्म हो गया है तो पुराना वक़्त दुआओं में मांग रहे है

कई बार दूसरे मौके शायद न मिले वेद ज़िन्दगी में,
नाराज़ी , बेरुख़ी तो बस एक पल की है, पर साथ शायद ज़िन्दगी भर का

वेद

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