जला रहीं है
वो जला रही है कुछ
लगता है हमारी बातों कोसमेट कर अग्नि दे रही है
दिल करता है
थोड़ी सी ही सही वो कहे तो
मदद कर दूँ उसकी
मेरी भी कुछ यादों का हिस्सा
उसने अभी अभी जलाया है
वक्त की चादर में लपेटकर
कही फेंक न दे
मैंने कहाँ था उसको
तुम हो जैसी
वैसी क्यों दिखती नहीं मुझको
बाहर से इतनी शांत रहती हो
तुम हो तो नहीं इतनी
जितनी तुम दिखती हो
उस दिन भी तुमने
जला दिए थे मेरे ख़त
मैं समझ नहीं पाता हूँ
तुमको कई बार
जवाब जानता हूं सारे
फिर भी सवाल पुछते रहता हूँ
मेरे पास कुछ है नहीं
न सँजोने को न जलाने को
तुम ही जाने क्या
जलती रहती हो
तो मैं ख़ुद ही
जलता रहता हूँ अपने में ही .......
--वेद
Comments
Post a Comment