कभी कभी किस्से लिखता हूँ














कभी कभी किस्से लिखता हूँ
जिन्दंगी की अधूरी ख्वाहिशो का हिसाब लिखता हूँ|
कभी गीतों से अल्फाज़ चुरा लेता हूँ ,
फिर इन्ही चुराए हुए अल्फाजों से नए किस्से लिखता हूँ |

अब ख्वाहिशे पूरी करने का दिल करता है .
कई पूरी हो गयी है , कुछ अब भी बाकि है |
मेरी हजारो ख्वाहिशे अधूरी है ,खामोश अंधरे की तरह |
सिर्फ एक सूरज की तलाश में ,
अब खामोश रातों के किस्से लिखता हूँ ,
कभी कभी किस्से लिखता हूँ |

अपने ही अन्दर कही सवालो के जवाब खोजता हूँ |
जवाब अक्सर कुछ बिखरा बिखरा सा मिलता है |
फिर इन्ही बिखरे जवाबो को जोड़कर किस्से लिखता हूँ |
कभी कभी किस्से लिखता हूँ .....
                                                - वेद


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