कुछ अपने से ख़याल - 1




फिर एक दिन मैंने ख़ुद को रोक लिया 

हम कब तक भागते रहेंगे, पीछा करते रहेंगे मैं उस दिन सोचते सोचते पता नहीं गया पहुँच गया। चलते कदमों को रोक लेना आसान है और जब मन यात्रा पर निकल जाए तो फिर क्या ही कहने। एक एक कर दिन हफ़्तों में बदल गए और हफ़्ते महीनों में, मेरी यात्रा रोज़ कहीं से शुरु होकर कही को जा रही थी एक दम बेदिशा। मैंने तुम्हारे ज़रिये इसको एक दिशा प्रदान करने की सोची फिर बात नहीं बन पाई। फिर मैंने एक दिन खुद से ही रुक जाना ठीक समझा, अब कदम पड़ते नहीं उधर न मन। तुम्हारे वाले रास्ते अब अनमने लग रहे है, जब दिशा नहीं मिली तो वह खो गए है ठीक तुम्हारी तरह।

-वेद


फिर इसमें देर क्यों

उस दिन तुमसे एक बात कहनी थी मैंने कुछ नहीं कहना ठीक समझा। हमारे बीच महीनों से कोई बात नहीं हुई है, माफ करना पर मैं हाल पूछने को बात करना नहीं समझता। तो ऐसे में इस अनंत मौन को तोड़ना सही नहीं था। तस्वीरें है या यूँ कहे कि बदलती हुई तुम की कुछ निशानियां। इन्हें बदलता देख कर मन किया कि कुछ बोल दूँ, फिर सोचा इनके पीछे की तुम बदल गई होगी जाने क्या समझोगी। अब जब कल फिर से हाल पूछने वाला तुम्हारा मैसेज देखा तो सोचा बोल देता हूँ। अब सब कुछ चक ही रहा है तो इसमें इतनी देर क्यों। खैर तुम बताओं इन दिनों क्या कुछ कर रहीं हो, कैसी हो? कुछ नया पुराना कभी फुर्सत हो तो फ़ोन करना, नहीं रहने दो अब क्या ही बातें करेंगे। वहीं सब तुम्हारा काम मेरा कॉलेज और थोड़ा बहुत इम्तियाज़ अली।

-वेद

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