तुम आवाज़ हो



उपवन में कुछ फूल खिले होंगे 

आज यहाँ कुछ पंछी आये है

तितलियों का भी एक काफ़िला सा आया जान पड़ता है 

तुम आना 

ऋतुएँ बदल रही है 


तुम्हारा आना 

किसी ऐसे ही मौसम की राह देख रहा था 

अब के तुम न आये तो ये पंछी नाराज़ हो जायेंगे 

ये जो फूल है खिले खिले से 

इनकी महक न खो जाए 

यहाँ एक सन्नाटा सा पसरा रहता है 

तुम आवाज़ हो 

लौट आना 


ये बदलते मौसम उसे आस देते है एक 

वो आँगन में घण्टों बैठती है 

सुबह की धूप बहाना होता है एक 

और शाम तक तुम्हारा इंतज़ार 

तुम्हारा कमरा वो रोज़ ज़िंदा कर देती है

रो लेती है कभी कभी 

पर कहती कुछ किसी से नहीं

वो चुप सी

रहती है 

बिल्कुल चुप 

मैं न कहता था कि तुम आवाज़ हो 

लौट आना


-वेद


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