भागे रे मन
बदलते मौसम
बदलती दुनिया
ऐसा लगता है जैसे
हर पल बहुत कुछ बदल रहा है
ठहराव ये शब्द खो गया है
अब जो है वो कुछ और ही है
मैं अपने आस पास देख लेना चाहता हूँ
पर बंद कमरे खिड़की के बाहर क्या ही देख लूँगा
कैद में हूँ
पर कितनी लंबी
गिनती ख़त्म हो चली है
रोज़ का कोई नया आँकड़ा है
रोज़ कोई नया खेल है
ये जो बदला हुआ कल मिलेगा
इसमें कितना आज जैसा कुछ बच जाएगा
इसका जवाब किसी खेल या खिलाड़ी के पास नहीं
पिछले दिनों कोई रुठ गया था
मैंने हाल पूछा है उससे
मैं इंतज़ार में हूँ
कि जवाब आएगा
कुछ जवाब आ जाते है
कुछ रह जाते है
जो रह गए है
वो एक टिस के साथ लौट आते है
टिस यह कि
बात हो सकती थी
हम रुके रहे
और वो रुक गए
इस कैद के बाहर
एक और कैद है
-वेद
Comments
Post a Comment