आओगे तुम कभी
कुछ बातें होती है, जो की जानी चाहिए लेकिन कहीं खो जाती है। दरअसल ये बातें इसीलिए नहीं हो पाती है क्योंकि तुम, हम, सब ग़ुम हो जाते है और रह जाते है कुछ वादें । आज बड़े दिनों बाद अपने घर पहुँचा तो रास्तें में आधा टुटा एक मील का मुझे घूरता रहा। एक सवाल था उसके पास......
आओगे तुम कभी
कोहरे की चादर में लिपटा हुआ ये शहर
अगले शहर से
आते मुसाफिरों से पूछता है
खुद ही का पता
और सालों से मायूस सी शकल बना कर
धुंध के छट जाने पर
खुद के नाम को और रोशन करता है
तुम लौटोगे यक़ीनन
ये वादा उसे रह रहकर याद आता है
एक सवाल फिर ज़ेहन में आता है
क्या आओगे तुम कभी ??
आज फिर कोहरा घना
हवाएं भी काफी सर्द है
तुमने छोड़ा था शहर
किसी ऐसे ही मौसम में
- वेद
Deep
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