बंद कमरा
आज मैंने उस जर्जर हो चुके मकां में
जब पहुँच कर मुआयना किया
तो जैसे सब कुछ धीरे धीरे सामने आने लगा
शुरुआत उस कमरे से हुई
जहाँ शाम को
थक कर पसर जाया करते थे
फ़िर मुझे यादों का स्वाद किचन तक ले गया
एक सुबह सामने आ गई
हाथ में पोहा और जलेबी की मिठास मेरे होंठो से होकर गुज़र गई
फिर पीछे एक मैदान था
आम, अमरूद जैसे कुछ पेड़ थे
मैं हाथ मे माज़ा की बोतल लिए
उस स्वाद को चखने की नाकाम कोशिश भी कर लिया
मैं वहा से हारकर फिर आगे पहुँचा
यहाँ एक बंद कमरा था
दरवाजे पर कुछ लिख कर इसे
हमेशा के लिए बंद कर दिया
"इसमें संजोये है बचपन के कुछ अफ़साने अब जब घर के बच्चे बड़े हो गए तो इन्हें नीलाम कर दिया है। "
मैं हैरान सा उस तख़्ती को देखता रहा
मेरे अंदर का शोर थम गया
और एक शून्य ने मुझे घेर लिया
मैं अवाक सा खड़ा रहा
और फिर उस बंद कमरे के दरवाज़े पर लिख दिया
मैं लौटकर आऊंगा ज़रूर
मेरे अंदर का एक कौना है
जो नीलाम हुए इस कमरे के अंदर छूट गया है
हो सके तो उसे लौटा देना
वेद
Umda lekhan Sir!!
ReplyDelete✌🤘
ReplyDeleteबहुत उम्दा लेख वेदान्त भाई
ReplyDeleteखूबसूरत
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